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Tuesday, August 14, 2012

कांडा का भांडा

कांडा पूरी तरह से बिरनियाए हुए हैं,एक ही कमरे में यहाँ से वहाँ लगभग दौड़ते हुए टहल रहे हैं,लेकिन किसके कमरे में,ये बाद में ही खुलासा हो पायेगा.
गीतिका शर्मा ने सुसाइड कर ली,बात सिर्फ सुसाइड की नहीं है,कांडा का बिरनियाना भी वाजिब है,आखिर उनके कंपनी की युवा और अतिशय प्रतिभाशाली,सबसे होनहार अधिकारी अब इस दुनिया में नहीं रही.अब उनके बिना तो इनका कारोबार ही ठप हो जाएगा.
गीतिका की प्रतिभा का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि सिर्फ इंटर पास होने के बावजूद उन्होंने कांडा की कंपनी का अत्यंत महत्वपूर्ण पद भी अपनी कुशल कार्यक्षमता के बल पर संभाल लिया,और कंपनी के लिए वो कितनी ज्यादा महत्वपूर्ण थी,इस बात का अंदाजा इसी से लगा लीजिये कि जब गीतिका ने काम करना बंद कर दिया तो कांडा जैसा रसूखदार भी उनके अभिभावकों कि मिन्नतें करने गया,क्यूंकि उन जैसी प्रतिभाशाली प्रशासक के अभाव में उनकी कंपनी का समूचा कारोबार औंधे मुह गिर जाने का खतरा था,गीतिका शर्मा ने एक बार फिर यह साबित कर दिखाया था कि आपके पास डिग्री न हो तो भी अपनी प्रतिभा के दम पर कोई भी मुकाम हासिल करना मुमकिन है.
लेकिन खैर उन्होंने तो अज्ञात कारणों से अपनी इह-लीला समाप्त कर ली,किन्तु बेचारे कांडा मारे गए,अब बताइए कांडा ने बेचारी लड़की की प्रतिभा को पहचान उसे आगे बढ़ने का भरपूर मौका दिया,इसमें उनका क्या दोष.लेकिन लड़की आगे चलकर उनकी लीला बीच में ही समाप्त कर देगी,इसका उन्हें जरा भी आभास नहीं था.
वो तो बस कांग्रेस की परंपरा को आगे बढ़ाने का ही कार्य कर रहे थे,क्यूंकि नारायण दत्त तिवारी अब जर्जर हो चुके हैं और अभिषेक मनु सिंघवी अज्ञातवास में चले गए,ऐसे में दारोमदार किसी न किसी को तो संभालना ही था,भूल चूक तो होती ही रहती है.अब जरा सोचिये अगर गीतिका ने सुसाइड नहीं किया होता तो कुछ दिनों बाद हो सकता था कि चोरी-छुपे किसी बच्चे को जन्म देती,फिर वो बच्चा बड़ा होता….उसे पता चलता कि कांडा के उसका बाप होने की प्रबल संभावनाएं हैं…और वो कांडा साहब पर जायदाद मांगने के लिए मुकदमा करता,फिर वही डीएनए टेस्ट का तामझाम,हो सकता था कि कम्पटीशन में और भी कांग्रेसी नेता होते किन्तु गीतिका की असमय मृत्यु से कांडा का बुढापे में इस बहाने से प्रसिद्धि हासिल करने का ख्वाब भी बुरी तरह टूट गया.अब दूसरी गीतिका को ढूँढना इतना आसन भी तो नहीं है,ऐसी प्रतिभाएं हर चौक-चौराहों पर नहीं मिलती.
कांडा को दुःख इस बात का नहीं है की उनका भांडा फूट गया,बल्कि अफ़सोस इस बात का है कि ऐसी परिस्थिति बनी कि मामला लीक हो गया और मंजिल पर पहुचने से पहले ही उनका टायर पंचर हो गया.प्रसिद्धि जो उन्हें बहुत बाद में दूसरी तरह से मिलनी थी,उसका समय-पूर्व प्रसव हो गया,मामला उलटे कांडा के ऊपर तलवार लटकने का बन गया,और तो और,स्वामी रामदेव का विशाल आन्दोलन सुर्ख़ियों में जरुर छाया,लेकिन यह भी कांडा की सुर्खियाँ मिटाने में सहायक नहीं बन सका. वैसे राहुल गाँधी वास्तव में बहुत महान व्यक्ति हैं,४१ की उम्र में भी जैसा आत्म-नियंत्रण उनके पास है,वैसे विरले ही देखने को मिलता है.खैर बात पर वापस आते हैं.
आखिर नारायण दत्त तिवारी भी किसी के खेत की मूली नहीं हैं,उनकी बराबरी कर पाना सिर्फ कांग्रेसी ही नहीं,बल्कि किसी भी नेता के लिए बड़ी टेढ़ी खीर है,लेकिन ये गीतिका भी जान बूझकर कांडा को फँसाना चाहती थी,नहीं तो पहले दिन ही सुसाइड कर लिया होता.अब बेचारे कांडा फंसे,वैसे नेताओं की बीवियां इन ख़बरों को बड़ी आसानी से एडजस्ट कर लेती हैं,जनता ही पचा नहीं पाती है.अब कांडा फंस गए इसलिए बदनाम है,जिनका अभी तक कुछ लीक नहीं हुआ वे अब भी सीना ठोक कर घूमते हैं,जैसे कुछ दिनों पहले तक सिंघवी साहब घूमते थे.
वैसे बात सिर्फ गीतिका और कांडा पर आकर ख़त्म हो जाती तो कोई बात होती,लेकिन सच्चाई यह है कि आज भी कई सारे कांडा और गीतिका भारत में कार्यरत हैं,सिर्फ उनका भांडा अब तक नहीं फूटा है,कई सारे कार्यालयों में नजर डालिए तो आपको ऐसी प्रतिभाशाली युवतियां ढूँढने में दिक्कत नहीं होंगी जो सामान्य कार्यक्षमता में थोड़ी या ज्यादा उन्नीस रहने पर भी अपनी प्रतिभा के दम पर ऊँचे मुकाम पर हैं.अतः अगर आपकी नजर में ऐसा कोई हो तो उसे समझाएं कि जरुरत से ज्यादा तेजी से भागने कि कोशिश करने वाले यूँ ही कभी भी औंधे मुह गिर सकते हैं,और तब उनके हाथ अपने चिता की राख भी नहीं लगेगी.विदेशी संस्कृति से नफरत न करें,लेकिन सिर्फ उनकी अच्छी बातों को ही अपनाये…हर चीज की अंधी नक़ल करना उन्नति नहीं है,पतन बड़ा ह्रदय-विदारक होता है,

Monday, July 2, 2012

भारतीय रेल:मजे हैं

अभी पिछले दिनों मुझे फिर एक बार ट्रेन की यात्रा करनी पड़ी...परीक्षा के सिलसिले में बनारस जाना था...वैसे मेरा एक मित्र कहता है कि जब तक आप परीक्षाएं दे रहे हैं अर्थात बेरोजगार हैं, तब तक आप आरक्षित श्रेणी में आते हैं,अतः परीक्षा देते जाते समय छोटी दूरी के लिए टिकट नहीं कटाना चाहिए,इस विचार के समर्थक भी भारी मात्रा में हैं,लेकिन मेरा यह मानना है कि अगर पर्याप्त समय हो तब टिकेट अवश्य कटा लेना चाहिए,हाँ अगर वास्तव में समय की कमी है तो परीक्षा का समय ध्यान में रखते हुए बिना टिकेट यात्रा देकर जुर्माना भरने में भी कोई हर्ज नहीं है.
वैसे आम तौर पर मेरा यह मानना है कि परीक्षार्थियों को ट्रेन में टिकेट चेकर ज्यादा तंग भी नहीं करते हैं,ऐसा मैं अपने अनुभव के आधार पर भी कह सकता हूँ.आखिर टिकट चेकर भी कोई जन्मजात टिकट चेकर नहीं बन जाता,छात्रों की समस्या से वो भी बखूबी वाकिफ रहता है.अब जैसे एक बार मेरे एक परिचित बिना टिकट लिए ट्रेन से चले आ रहे थे,तब तक टिकट चेकर आये और सब किसी का टिकट चेक करने लगे.अब इन्होने टिकट तो लिया नहीं था,अतः उन्होंने अपनी पुस्तक निकाली और वही पढना शुरू कर दिया,ऐसी मुद्रा में आ गए मान लो किताब में खो से गए हो...टिकट चेकर उनको देखकर बोला कि 'यहाँ पर क्या पढ़ रहे हो,पढना है तो घर पे पढोगे तो ज्यादा फायदा करेगा,मैं जानता हूँ कि तुमने टिकट नहीं लिया है,कोई बात नहीं लेकिन कभी-कभी टिकट कटा भी लिया करो,मैं तो कुछ नहीं कहूँगा,लेकिन मेरी जगह कोई दूसरा होता तो जुर्माना भर देना पड़ता.'
एक बार तो हद हो गयी,मेरे एक और मित्र महोदय परीक्षा के सिलसिले में ही गोरखपुर जा रहे थे,और उन्होंने बाकायदा टिकट कटा रखा था,वैसे वो भी दिखने में छात्र ही लगते थे,और छात्र थे भी...तो जब वो जा रहे थे तब टिकट चेकर आये,उन्होंने तिच्कत दिखने को कहा और इन्होने टिकट दिखाया...टिकट देखकर और इनको देखकर टिकट चेकर बोल रहे हैं कि 'एकदम पागल ही हो,परीक्षा देने जा रहे हो,लोकल में जाना है और ८० रुपया का टिकट कटाए हो...अरे ८० रुपया में तुम दो बार भरपेट खाना खा लेते,परीक्षा देने जाते समय भी कोई टिकट कटाता है.इस तरह हमेशा टिकट कटाओगे,अभी बेरोजगार हो तो कैसे काम चलेगा.'
अब बताइए इस पर क्या कह सकते हैं.
रेलवे में बेटिकट यात्रा करना जुर्म तो अवश्य है,लेकिन कभी परिस्थितियां ऐसी आ जाती हैं,कि न चाहते हुए भी व्यक्ति ऐसा करने को मजबूर हो जाता है.

Sunday, June 17, 2012

लाइफ/जिंदगी और हिंदी गाने


जिंदगी प्यार का गीत है,इसे हर दिल को गाना पड़ेगा.
          जिंदगी मतलब लाइफ......लाइफ क्या है,एक लेंस!!वैसे लाइफ सिर्फ लेंस ही है,ऐसा कहना सही नहीं है....एक महाशय थे,उनका मानना था कि लाइफ रोमांस है,अब इससे भी कोई इनकार नहीं कर सकता.इसके अलावे भी लाइफ की तुलना बहुत सारी चीजों से की जा सकती है,जैसे जिंदगी एक सफ़र है सुहाना...या फिर जिंदगी हर कदम एक नयी जंग है.दोनो अर्थ में परस्पर विरोधी भले ही हैं,लेकिन दोनो ही सुनने में अच्छे लगते हैं.
             वैसे हिंदी गानों की हमेशा से आलोचना होती रही है,जमाने के साथ लोगों का स्वाद भी बदलता रहता है,लेकिन जहां तक जिंदगी की वास्तविकता से रु-ब-रु कराने की बात हो तो कुछ गाने ऐसे हैं,जो कालजयी से प्रतीत होते हैं,जैसे 'कोई लाख करे चतुराई,करम का लेख मिटे ना रे भाई','छल और कपट के हाथों अपना बेच रहा ईमान,कितना बदल गया इंसान'.गीतकार कवि प्रदीप जी वास्तव में भारत रत्न के सच्चे हकदार थे भी.खैर उनकी वाजिब प्रशंसा कर सकूँ इस लायक गंभीरता मेरे लेखन में नहीं है. ..
            चलिए फिर हिंदी गानों पर आगे बढ़ते हैं,जिंदगी से जुड़े या फिर मनुष्य के मनोभावों को बारीकियों से उकेरने की बात हो तो ये गाने जिंदगी को एक दार्शनिक की नजर से प्रस्तुत करते से लगते हैं  और एक अलग सा प्रश्न,एक अलग कोण से जिंदगी को देखने,समझने का नजरिया इन गानों के जरिये बिना पोथी पढ़े भी लोगों में आ जाता है..
       ..जिंदगी शब्द के साथ कुछ गानों  पर ध्यान दीजिये और आप पाएंगे कि पैसे कमाने के लिए बदनाम हिंदी सिने जगत के गीतकार भी किसी फटेहाल क्रांतिकारी महान कवि से कोई सैकड़ों प्रकाश वर्ष पीछे नहीं हैं.
            आजकल वाहियात गाने हिट होने लगे हैं.हाँ निश्चित रूप से ऐसे गाने तो पहले भी आते थे,लेकिन आजकल ये हिट भी होने लगे हैं,इसका सीधा मतलब यह है कि वाहियात संगीत के शौकीनों की तादाद बढ़ गयी है.और बाजारवाद से तो हमारी सरकार भी प्रभावित होने से नहीं बच पाती,बेचारा हिंदी सिने जगत कौन सा अकेला कुसूरवार है,लेकिन बेहतरीन गाने आज भी आते हैं,भले ही उन्हें वो पब्लिसिटी नहीं मिलती जो वाहियात दर्जे की पसंद की गयी घटिया गाने का कोई मुकाबला कर सके.लेकिन बेहतरीन हिंदी गानों का श्रोता वर्ग आज भी इन्हें बड़े करीने से सुनता है.ऐसे गाने पार्टी में भले ही समां नहीं बांधेंगे लेकिन अकेलेपन में उनका कोई जवाब भी नहीं है.
       अतः यह जानते हुए भी कि गंभीर गानों के जरिये कमाई कम ही होगी,फिर भी लिखना कोई मामूली चीज नहीं है.बॉलीवुड का ही एक और गाना है नये जमाने का अल्लाह के बंदे हँस दे,जो भी हो कल फिर आएगा.

Monday, June 14, 2010

My photography

My photography

My photography

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