कांडा पूरी तरह से बिरनियाए हुए हैं,एक ही कमरे में यहाँ से वहाँ लगभग दौड़ते हुए टहल रहे हैं,लेकिन किसके कमरे में,ये बाद में ही खुलासा हो पायेगा.
गीतिका शर्मा ने सुसाइड कर ली,बात सिर्फ सुसाइड की नहीं है,कांडा का बिरनियाना भी वाजिब है,आखिर उनके कंपनी की युवा और अतिशय प्रतिभाशाली,सबसे होनहार अधिकारी अब इस दुनिया में नहीं रही.अब उनके बिना तो इनका कारोबार ही ठप हो जाएगा.
गीतिका की प्रतिभा का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि सिर्फ इंटर पास होने के बावजूद उन्होंने कांडा की कंपनी का अत्यंत महत्वपूर्ण पद भी अपनी कुशल कार्यक्षमता के बल पर संभाल लिया,और कंपनी के लिए वो कितनी ज्यादा महत्वपूर्ण थी,इस बात का अंदाजा इसी से लगा लीजिये कि जब गीतिका ने काम करना बंद कर दिया तो कांडा जैसा रसूखदार भी उनके अभिभावकों कि मिन्नतें करने गया,क्यूंकि उन जैसी प्रतिभाशाली प्रशासक के अभाव में उनकी कंपनी का समूचा कारोबार औंधे मुह गिर जाने का खतरा था,गीतिका शर्मा ने एक बार फिर यह साबित कर दिखाया था कि आपके पास डिग्री न हो तो भी अपनी प्रतिभा के दम पर कोई भी मुकाम हासिल करना मुमकिन है.
लेकिन खैर उन्होंने तो अज्ञात कारणों से अपनी इह-लीला समाप्त कर ली,किन्तु बेचारे कांडा मारे गए,अब बताइए कांडा ने बेचारी लड़की की प्रतिभा को पहचान उसे आगे बढ़ने का भरपूर मौका दिया,इसमें उनका क्या दोष.लेकिन लड़की आगे चलकर उनकी लीला बीच में ही समाप्त कर देगी,इसका उन्हें जरा भी आभास नहीं था.
वो तो बस कांग्रेस की परंपरा को आगे बढ़ाने का ही कार्य कर रहे थे,क्यूंकि नारायण दत्त तिवारी अब जर्जर हो चुके हैं और अभिषेक मनु सिंघवी अज्ञातवास में चले गए,ऐसे में दारोमदार किसी न किसी को तो संभालना ही था,भूल चूक तो होती ही रहती है.अब जरा सोचिये अगर गीतिका ने सुसाइड नहीं किया होता तो कुछ दिनों बाद हो सकता था कि चोरी-छुपे किसी बच्चे को जन्म देती,फिर वो बच्चा बड़ा होता….उसे पता चलता कि कांडा के उसका बाप होने की प्रबल संभावनाएं हैं…और वो कांडा साहब पर जायदाद मांगने के लिए मुकदमा करता,फिर वही डीएनए टेस्ट का तामझाम,हो सकता था कि कम्पटीशन में और भी कांग्रेसी नेता होते किन्तु गीतिका की असमय मृत्यु से कांडा का बुढापे में इस बहाने से प्रसिद्धि हासिल करने का ख्वाब भी बुरी तरह टूट गया.अब दूसरी गीतिका को ढूँढना इतना आसन भी तो नहीं है,ऐसी प्रतिभाएं हर चौक-चौराहों पर नहीं मिलती.
कांडा को दुःख इस बात का नहीं है की उनका भांडा फूट गया,बल्कि अफ़सोस इस बात का है कि ऐसी परिस्थिति बनी कि मामला लीक हो गया और मंजिल पर पहुचने से पहले ही उनका टायर पंचर हो गया.प्रसिद्धि जो उन्हें बहुत बाद में दूसरी तरह से मिलनी थी,उसका समय-पूर्व प्रसव हो गया,मामला उलटे कांडा के ऊपर तलवार लटकने का बन गया,और तो और,स्वामी रामदेव का विशाल आन्दोलन सुर्ख़ियों में जरुर छाया,लेकिन यह भी कांडा की सुर्खियाँ मिटाने में सहायक नहीं बन सका. वैसे राहुल गाँधी वास्तव में बहुत महान व्यक्ति हैं,४१ की उम्र में भी जैसा आत्म-नियंत्रण उनके पास है,वैसे विरले ही देखने को मिलता है.खैर बात पर वापस आते हैं.
आखिर नारायण दत्त तिवारी भी किसी के खेत की मूली नहीं हैं,उनकी बराबरी कर पाना सिर्फ कांग्रेसी ही नहीं,बल्कि किसी भी नेता के लिए बड़ी टेढ़ी खीर है,लेकिन ये गीतिका भी जान बूझकर कांडा को फँसाना चाहती थी,नहीं तो पहले दिन ही सुसाइड कर लिया होता.अब बेचारे कांडा फंसे,वैसे नेताओं की बीवियां इन ख़बरों को बड़ी आसानी से एडजस्ट कर लेती हैं,जनता ही पचा नहीं पाती है.अब कांडा फंस गए इसलिए बदनाम है,जिनका अभी तक कुछ लीक नहीं हुआ वे अब भी सीना ठोक कर घूमते हैं,जैसे कुछ दिनों पहले तक सिंघवी साहब घूमते थे.
वैसे बात सिर्फ गीतिका और कांडा पर आकर ख़त्म हो जाती तो कोई बात होती,लेकिन सच्चाई यह है कि आज भी कई सारे कांडा और गीतिका भारत में कार्यरत हैं,सिर्फ उनका भांडा अब तक नहीं फूटा है,कई सारे कार्यालयों में नजर डालिए तो आपको ऐसी प्रतिभाशाली युवतियां ढूँढने में दिक्कत नहीं होंगी जो सामान्य कार्यक्षमता में थोड़ी या ज्यादा उन्नीस रहने पर भी अपनी प्रतिभा के दम पर ऊँचे मुकाम पर हैं.अतः अगर आपकी नजर में ऐसा कोई हो तो उसे समझाएं कि जरुरत से ज्यादा तेजी से भागने कि कोशिश करने वाले यूँ ही कभी भी औंधे मुह गिर सकते हैं,और तब उनके हाथ अपने चिता की राख भी नहीं लगेगी.विदेशी संस्कृति से नफरत न करें,लेकिन सिर्फ उनकी अच्छी बातों को ही अपनाये…हर चीज की अंधी नक़ल करना उन्नति नहीं है,पतन बड़ा ह्रदय-विदारक होता है,
गीतिका शर्मा ने सुसाइड कर ली,बात सिर्फ सुसाइड की नहीं है,कांडा का बिरनियाना भी वाजिब है,आखिर उनके कंपनी की युवा और अतिशय प्रतिभाशाली,सबसे होनहार अधिकारी अब इस दुनिया में नहीं रही.अब उनके बिना तो इनका कारोबार ही ठप हो जाएगा.
गीतिका की प्रतिभा का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि सिर्फ इंटर पास होने के बावजूद उन्होंने कांडा की कंपनी का अत्यंत महत्वपूर्ण पद भी अपनी कुशल कार्यक्षमता के बल पर संभाल लिया,और कंपनी के लिए वो कितनी ज्यादा महत्वपूर्ण थी,इस बात का अंदाजा इसी से लगा लीजिये कि जब गीतिका ने काम करना बंद कर दिया तो कांडा जैसा रसूखदार भी उनके अभिभावकों कि मिन्नतें करने गया,क्यूंकि उन जैसी प्रतिभाशाली प्रशासक के अभाव में उनकी कंपनी का समूचा कारोबार औंधे मुह गिर जाने का खतरा था,गीतिका शर्मा ने एक बार फिर यह साबित कर दिखाया था कि आपके पास डिग्री न हो तो भी अपनी प्रतिभा के दम पर कोई भी मुकाम हासिल करना मुमकिन है.
लेकिन खैर उन्होंने तो अज्ञात कारणों से अपनी इह-लीला समाप्त कर ली,किन्तु बेचारे कांडा मारे गए,अब बताइए कांडा ने बेचारी लड़की की प्रतिभा को पहचान उसे आगे बढ़ने का भरपूर मौका दिया,इसमें उनका क्या दोष.लेकिन लड़की आगे चलकर उनकी लीला बीच में ही समाप्त कर देगी,इसका उन्हें जरा भी आभास नहीं था.
वो तो बस कांग्रेस की परंपरा को आगे बढ़ाने का ही कार्य कर रहे थे,क्यूंकि नारायण दत्त तिवारी अब जर्जर हो चुके हैं और अभिषेक मनु सिंघवी अज्ञातवास में चले गए,ऐसे में दारोमदार किसी न किसी को तो संभालना ही था,भूल चूक तो होती ही रहती है.अब जरा सोचिये अगर गीतिका ने सुसाइड नहीं किया होता तो कुछ दिनों बाद हो सकता था कि चोरी-छुपे किसी बच्चे को जन्म देती,फिर वो बच्चा बड़ा होता….उसे पता चलता कि कांडा के उसका बाप होने की प्रबल संभावनाएं हैं…और वो कांडा साहब पर जायदाद मांगने के लिए मुकदमा करता,फिर वही डीएनए टेस्ट का तामझाम,हो सकता था कि कम्पटीशन में और भी कांग्रेसी नेता होते किन्तु गीतिका की असमय मृत्यु से कांडा का बुढापे में इस बहाने से प्रसिद्धि हासिल करने का ख्वाब भी बुरी तरह टूट गया.अब दूसरी गीतिका को ढूँढना इतना आसन भी तो नहीं है,ऐसी प्रतिभाएं हर चौक-चौराहों पर नहीं मिलती.
कांडा को दुःख इस बात का नहीं है की उनका भांडा फूट गया,बल्कि अफ़सोस इस बात का है कि ऐसी परिस्थिति बनी कि मामला लीक हो गया और मंजिल पर पहुचने से पहले ही उनका टायर पंचर हो गया.प्रसिद्धि जो उन्हें बहुत बाद में दूसरी तरह से मिलनी थी,उसका समय-पूर्व प्रसव हो गया,मामला उलटे कांडा के ऊपर तलवार लटकने का बन गया,और तो और,स्वामी रामदेव का विशाल आन्दोलन सुर्ख़ियों में जरुर छाया,लेकिन यह भी कांडा की सुर्खियाँ मिटाने में सहायक नहीं बन सका. वैसे राहुल गाँधी वास्तव में बहुत महान व्यक्ति हैं,४१ की उम्र में भी जैसा आत्म-नियंत्रण उनके पास है,वैसे विरले ही देखने को मिलता है.खैर बात पर वापस आते हैं.
आखिर नारायण दत्त तिवारी भी किसी के खेत की मूली नहीं हैं,उनकी बराबरी कर पाना सिर्फ कांग्रेसी ही नहीं,बल्कि किसी भी नेता के लिए बड़ी टेढ़ी खीर है,लेकिन ये गीतिका भी जान बूझकर कांडा को फँसाना चाहती थी,नहीं तो पहले दिन ही सुसाइड कर लिया होता.अब बेचारे कांडा फंसे,वैसे नेताओं की बीवियां इन ख़बरों को बड़ी आसानी से एडजस्ट कर लेती हैं,जनता ही पचा नहीं पाती है.अब कांडा फंस गए इसलिए बदनाम है,जिनका अभी तक कुछ लीक नहीं हुआ वे अब भी सीना ठोक कर घूमते हैं,जैसे कुछ दिनों पहले तक सिंघवी साहब घूमते थे.
वैसे बात सिर्फ गीतिका और कांडा पर आकर ख़त्म हो जाती तो कोई बात होती,लेकिन सच्चाई यह है कि आज भी कई सारे कांडा और गीतिका भारत में कार्यरत हैं,सिर्फ उनका भांडा अब तक नहीं फूटा है,कई सारे कार्यालयों में नजर डालिए तो आपको ऐसी प्रतिभाशाली युवतियां ढूँढने में दिक्कत नहीं होंगी जो सामान्य कार्यक्षमता में थोड़ी या ज्यादा उन्नीस रहने पर भी अपनी प्रतिभा के दम पर ऊँचे मुकाम पर हैं.अतः अगर आपकी नजर में ऐसा कोई हो तो उसे समझाएं कि जरुरत से ज्यादा तेजी से भागने कि कोशिश करने वाले यूँ ही कभी भी औंधे मुह गिर सकते हैं,और तब उनके हाथ अपने चिता की राख भी नहीं लगेगी.विदेशी संस्कृति से नफरत न करें,लेकिन सिर्फ उनकी अच्छी बातों को ही अपनाये…हर चीज की अंधी नक़ल करना उन्नति नहीं है,पतन बड़ा ह्रदय-विदारक होता है,